Wednesday, 14 October 2015
बादशाहे दिल्ली के दरबार में एक बार,
चार जन नौकरी की तलाश में पहुँचे.
राजा ने चारो के परिचय पूछा-
एक ने अपना नाम बतलाया-
'अरिमर्दन सिंह,'
दूसरे ने - अरिदलमर्दन सिंह ,
तीसरा - अरिदलबधु मर्दन सिंह,
और चौथा !
चौथे ने अपना नाम बतलाया -
'अरि-दल-बधु-कुचि-मर्दन-सिंह' .
इधर बादशाहे- दिल्ली ने,
कृषि मंत्रालय का नाम बढ़ाकर-
कृषि एवं किसान - कल्याण मंत्रालय कर दिया है .
अच्छी लगती है शब्दों की बुनी भव्यता- दिव्यता ,
अच्छा लगता है शब्दों का यह खेल .
देखते रहिए आगे और क्या- क्या होता है !
पूर्वार्ध दूसरी किसी व्यंग्य रचना से हू-ब-हू लिया गया है .
Tuesday, 13 October 2015
दशहरा आते ही हर साल,
गावों-शहरों में सैकड़ों रावण उगआते हैं.
इनका प्रायोजित वध कर
असत्य पर सत्य की, अधर्म पर धर्म की,
जय-घोषणा की जाती है.
अच्छे-बुरे के द्वंद्व की कहानी अब बस!
अच्छा लगता है दशहरे का त्योहार;
आदर्शों को उम्मीद दिखाई देती है ,
आज के दिन,
और मूल्यों को
;अपने वज़ूद पर यक़ीन आता है.
सृजन- समस्त बुराइयों की प्रतिमूर्ति का,
कोमलमना मानव के हाथों,
फिर ध्वंस,
रामलीला नहीं है, यह रामकहानी है,
जब तक मानवता क़ायम रहेगी,
धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर, विजय होती रहेगी,
धर्म का अधर्म से , सत्य का असत्य से, समझौता होता रहेगा.
मुक्तिबोध की कहानी 'समझौता' से प्रेरित.
Subscribe to:
Posts (Atom)