अक्सर देखता हूँ-
बाप के कंधे से चिपका एक मासूम,
मेले में खिलौने की दुकानों से गुजरता है,
हाथ उठाता है,
और फासला एक कदम बढ़ जाता है.
एक नई दुकान आ जाती है; रंगीन खिलौनो वाली,
और फिर वही घटना.
या नन्हीं परी कोई
ह्वीलर पर गार्डन घूमती है-
रंग-विरंगे फूल!
आकर्षित होती है, करीब आती है,
हाथ उठाती है,और वह वस्तु,
अनायास पीछे चली जाती है.
उसकी सार्थकता यह कि-
उसकी उपस्थिति से दुनिया अस्तित्व पाती है,
उसकी गति से दुनिया विस्तार पाती है,
फिर भी-
उसके लिए आगे बढ़ने का मतलब;
चीजों का पीछे छूटते जाना है.
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