Tuesday 10 November 2015

अक्सर देखता हूँ- बाप के कंधे से चिपका एक मासूम, मेले में खिलौने की दुकानों से गुजरता है, हाथ उठाता है, और फासला एक कदम बढ़ जाता है. एक नई दुकान आ जाती है; रंगीन खिलौनो वाली, और फिर वही घटना. या नन्हीं परी कोई ह्वीलर पर गार्डन घूमती है- रंग-विरंगे फूल! आकर्षित होती है, करीब आती है, हाथ उठाती है,और वह वस्तु, अनायास पीछे चली जाती है. उसकी सार्थकता यह कि- उसकी उपस्थिति से दुनिया अस्तित्व पाती है, उसकी गति से दुनिया विस्तार पाती है, फिर भी- उसके लिए आगे बढ़ने का मतलब; चीजों का पीछे छूटते जाना है.

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