Tuesday, 10 November 2015

अक्सर देखता हूँ- बाप के कंधे से चिपका एक मासूम, मेले में खिलौने की दुकानों से गुजरता है, हाथ उठाता है, और फासला एक कदम बढ़ जाता है. एक नई दुकान आ जाती है; रंगीन खिलौनो वाली, और फिर वही घटना. या नन्हीं परी कोई ह्वीलर पर गार्डन घूमती है- रंग-विरंगे फूल! आकर्षित होती है, करीब आती है, हाथ उठाती है,और वह वस्तु, अनायास पीछे चली जाती है. उसकी सार्थकता यह कि- उसकी उपस्थिति से दुनिया अस्तित्व पाती है, उसकी गति से दुनिया विस्तार पाती है, फिर भी- उसके लिए आगे बढ़ने का मतलब; चीजों का पीछे छूटते जाना है.
चाँद अच्छा लगता है मुझे, इसलिए नहीं कि खूबसूरत है वह, बल्कि इसलिए कि रात के खिलाफ़ खड़ा होता है. मुसीबतें उस पर भी आती हैं, ठीक हमारी ही तरह, चढ़ाव-उतार उसके जीवन का हिस्सा है. अपना दुःख तो फिर भी हल्का है, उसके लिए सूरज की रौशनी भी धुँंधलका हैैै. कई बार दिन में सौ बार फतह होता है, फिर-फिर हर मुश्किल के बाद खड़ा होता है. उसकी अपनी दुनिया है, उसकी अपनी ज़िंदगी है, उसे एक पल की फुर्सत नहीं,फिर भी जहाँ ज़रूरत देखता है मेरे साथ खड़ा होता है.

Monday, 9 November 2015

सवेरा होता है, तुम्हारी आँखें चमक जाती हैं. सवेरा होता है, तुम्हारा चेहरा खिल जाता है. सवेरा होता है, तुम्हारा वज़ूद उभर आता है. तुम्हारा रूप पर्त-दर-पर्त खुलता है, और सवेरा होता है. मेरे दोस्त, सवेरा का मतलब- जगत का पुनर्प्रकाशन है- कलियों का फूटना फिर-फिर चिड़ियों का गाना, तुम्हारा उठना, सबको उठाना. और तुम कहती हो- सूर्योदय, सवेरा का मतलब! एक दूर की चीज़, खूबसूरत, चमकदार वस्तु से बावस्ता है सवेरा! रहस्यमयी आज़ादी की तरह खुशनुमा!

Wednesday, 14 October 2015

बादशाहे दिल्ली के दरबार में एक बार, चार जन नौकरी की तलाश में पहुँचे. राजा ने चारो के परिचय पूछा- एक ने अपना नाम बतलाया- 'अरिमर्दन सिंह,' दूसरे ने - अरिदलमर्दन सिंह , तीसरा - अरिदलबधु मर्दन सिंह, और चौथा ! चौथे ने अपना नाम बतलाया - 'अरि-दल-बधु-कुचि-मर्दन-सिंह' . इधर बादशाहे- दिल्ली ने, कृषि मंत्रालय का नाम बढ़ाकर- कृषि एवं किसान - कल्याण मंत्रालय कर दिया है . अच्छी लगती है शब्दों की बुनी भव्यता- दिव्यता , अच्छा लगता है शब्दों का यह खेल . देखते रहिए आगे और क्या- क्या होता है ! पूर्वार्ध दूसरी किसी व्यंग्य रचना से हू-ब-हू लिया गया है .

Tuesday, 13 October 2015

दशहरा आते ही हर साल, गावों-शहरों में सैकड़ों रावण उगआते हैं. इनका प्रायोजित वध कर असत्य पर सत्य की, अधर्म पर धर्म की, जय-घोषणा की जाती है. अच्छे-बुरे के द्वंद्व की कहानी अब बस! अच्छा लगता है दशहरे का त्योहार; आदर्शों को उम्मीद दिखाई देती है , आज के दिन, और मूल्यों को ;अपने वज़ूद पर यक़ीन आता है. सृजन- समस्त बुराइयों की प्रतिमूर्ति का, कोमलमना मानव के हाथों, फिर ध्वंस, रामलीला नहीं है, यह रामकहानी है, जब तक मानवता क़ायम रहेगी, धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर, विजय होती रहेगी, धर्म का अधर्म से , सत्य का असत्य से, समझौता होता रहेगा. मुक्तिबोध की कहानी 'समझौता' से प्रेरित.